छोड़ दी अब फ़िक्र मैंने सारी,
ज़िन्दगी अब हलकी हो या भारी |
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तनी रहती हैं सब नसें दिन हो या रात,
ज़िन्दगी फिर भी उथल पुथल है चाहे हो कोई बात |
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अब कोई तो भी आएगा जाएगा,
अब कोइ न कोई तो रोयेगा, या मुस्कुराएगा |
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क्या करें, अब कितने जज़्बाती बनें,
कितना हंसने और रोने के बीच में तनें |
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जो है सो ठीक है,
जो नहीं है सो भी ठीक है |
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~ अंजना अशोक