प्रकृति
जिंदगी हमेशा अपनी इच्छा से चली,
मेरी इच्छा से कभी चली ही नहीं |
सफर सब अपने हिसाब से खुद ही कट गए,
मेरे चाहने से रास्ते कभी मुड़े ही नहीं |
फूल चमन में जब खिले अपने आप ही खिल गए,
मेरे चाहने से कभी खिले ही नहीं |
बहार भी जब आई खुद ही चली आई,
पत्ते जब झड़े तब खुद ही झड़ गए |
मेरा जीवन भी प्रकृति ही तो है,
अपना आप चलता रहा, अपना आप चलता रहेगा |
~ अंजना अशोक