तुम तो चाँद थीं
बिखेरती थीं चांदनी |
तुम थीं चन्दन
बिखेरती थीं खुशबू |
तुम थीं पवन
मदमस्त घूमती थीं |
तुम थीं मृगनयनी
शोभनीय थे तुम्हारे नैना |
जब भी नज़र आती थीं
मन गुनगुना उठता था |
*
ये क्या हो गया ?
चाँद कहाँ खो गया ?
न अब पवन में वैसा शोर है
न ही खुशबू में अब ज़ोर है |
वो मृगनयनी सी आँखें
अब पहचान नहीं आ रहीं |
*
क्या तुम वही हो ?
या वही हो के भी कुछ और हो ?
कौन हो तुम ?
*
~ अंजना अशोक